संग्रह बहिणाईंच्या कविता

Posted by Monika shinde

  कडू बोलता बोलता 

पुढे कशी नरमली 
कडू निम्बोया शेवटी 
पिकीसनी गोड झाली 

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फाट आता आता टराटरा 
नही दया तुफानाले 
हाले बभयीचं पान 
बोले केयीच्या पानाले 
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 हिरवे हिरवे पानं 
लाल फयं  जशी चोच 
आलं वडाच्या झाडाले 
जसं पीक पोपटाचं 
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पयसाचे लाल फुलं 
हिरवे पानं गेले झडी 
इसरले लाल चोची 
मिट्ठू  गेले कुठे उडी ?
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 घाम गायता गायता 
शेतकरी तरसला 
तव्हा कुठे आभायात 
मेघराया बरसला 
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धरितीवरिली   हिरवय 
गेली उडत उडत 
अरे उडता उडता 
झाली नियी आभायात 
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उठा उठा बहिणाबाई 
बोंडं कपाशीचे येचा 
बोटं हालवा हालवा 
जशा पाखराच्या चोचा 
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जेवा  इमान सचोटी 
पापामधी रे बुडले 
 तव्हा  याच माणसानं 
किल्ल्या कुलूप घडले 

किल्ल्या राहिल्या ठिकाणी 
जव्हा तिजो-या फोडल्या 
तव्हा  याच माणसानं 
बेड्या लोखंडी घडल्या
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  माझं दुखं, माझं दुखं, 
जशी अंधारली रात 
माझं सुख, माझं सुख 
 हातातली काडवात 

  माझं दुखं, माझं दुखं, 
तयघरात कोंडले 
माझं सुख, माझं सुख
हंड्या झुंबर टांगले 
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 अरे देवा तुझं घेणं 
काही नही काही नही 
तुझ्या पुढचा निवद 
माणूसच जातो खाई 
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 गानं आलं कानामधी 
बुगडिले काय त्याचं?
वास गेला नाकामधी 
नथनीले  काय त्याचं ?
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सोता झाला रे आरसा 
असा मनाचा जो साफ 
तठे कशाचं रे पाप 
त्याले सात गुन्हे माफ 
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देखा महारवाड्यात 
कशी माणसाची दैना 
पोटामधी उठे आग  
चुल्हा पेटता पेटेना 
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आता चला जरा पुढे 
भट्टी दारूची लागली 
तठी भंगड दुनिया 
जिती अशीसन मेली 
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चाले छाप्याचं यंतर 
जीव आठे भी रमतो 
टाकीसनी रे मंतर 
जसा भगत घुमतो 

माणसापरी माणूस 
राहतो रे येडजाना 
अरे होतो छापिसानी  
कोरा कागद शहाणा 

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सोन्यारुप्याने मढला 
मारवाड्याचा बालाजी 
शेतकऱ्याचा इठोबा 
पानाफुलामध्ये राजी 

अरे बालाजी इठोबा 
दोन्ही एकज रे देव 
श्रीमंतीने गरिबीनं 
केला केला दुजाभाव 

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