संग्रह बहिणाईंच्या कविता
Posted byकडू बोलता बोलता
पुढे कशी नरमली
कडू निम्बोया शेवटी
पिकीसनी गोड झाली
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फाट आता आता टराटरा
नही दया तुफानाले
हाले बभयीचं पान
बोले केयीच्या पानाले
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हिरवे हिरवे पानं
लाल फयं जशी चोच
आलं वडाच्या झाडाले
जसं पीक पोपटाचं
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पयसाचे लाल फुलं
हिरवे पानं गेले झडी
इसरले लाल चोची
मिट्ठू गेले कुठे उडी ?
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घाम गायता गायता
शेतकरी तरसला
तव्हा कुठे आभायात
मेघराया बरसला
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धरितीवरिली हिरवय
गेली उडत उडत
अरे उडता उडता
झाली नियी आभायात
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उठा उठा बहिणाबाई
बोंडं कपाशीचे येचा
बोटं हालवा हालवा
जशा पाखराच्या चोचा
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जेवा इमान सचोटी
पापामधी रे बुडले
तव्हा याच माणसानं
किल्ल्या कुलूप घडले
किल्ल्या राहिल्या ठिकाणी
जव्हा तिजो-या फोडल्या
तव्हा याच माणसानं
बेड्या लोखंडी घडल्या
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माझं दुखं, माझं दुखं,
जशी अंधारली रात
माझं सुख, माझं सुख
हातातली काडवात
माझं दुखं, माझं दुखं,
तयघरात कोंडले
माझं सुख, माझं सुख
हंड्या झुंबर टांगले
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अरे देवा तुझं घेणं
काही नही काही नही
तुझ्या पुढचा निवद
माणूसच जातो खाई
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गानं आलं कानामधी
बुगडिले काय त्याचं?
वास गेला नाकामधी
नथनीले काय त्याचं ?
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सोता झाला रे आरसा
असा मनाचा जो साफ
तठे कशाचं रे पाप
त्याले सात गुन्हे माफ
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देखा महारवाड्यात
कशी माणसाची दैना
पोटामधी उठे आग
चुल्हा पेटता पेटेना
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आता चला जरा पुढे
भट्टी दारूची लागली
तठी भंगड दुनिया
जिती अशीसन मेली
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चाले छाप्याचं यंतर
जीव आठे भी रमतो
टाकीसनी रे मंतर
जसा भगत घुमतो
माणसापरी माणूस
राहतो रे येडजाना
अरे होतो छापिसानी
कोरा कागद शहाणा
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सोन्यारुप्याने मढला
मारवाड्याचा बालाजी
शेतकऱ्याचा इठोबा
पानाफुलामध्ये राजी
अरे बालाजी इठोबा
दोन्ही एकज रे देव
श्रीमंतीने गरिबीनं
केला केला दुजाभाव
कशी माणसाची दैना
पोटामधी उठे आग
चुल्हा पेटता पेटेना
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आता चला जरा पुढे
भट्टी दारूची लागली
तठी भंगड दुनिया
जिती अशीसन मेली
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चाले छाप्याचं यंतर
जीव आठे भी रमतो
टाकीसनी रे मंतर
जसा भगत घुमतो
माणसापरी माणूस
राहतो रे येडजाना
अरे होतो छापिसानी
कोरा कागद शहाणा
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सोन्यारुप्याने मढला
मारवाड्याचा बालाजी
शेतकऱ्याचा इठोबा
पानाफुलामध्ये राजी
अरे बालाजी इठोबा
दोन्ही एकज रे देव
श्रीमंतीने गरिबीनं
केला केला दुजाभाव
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